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तुम्हारी यादें परेशान करती है मुझे ।

बड़ी ज़ालिम है तुम्हारी यादें , अक्सर रुलाती है मुझे। संभलते संभलते कब टूट जाता हूं । ये भी पता नहीं चलता है आजकल मुझे। की बड़ी ज़ालिम है तुम्हारी यादें , अक्सर रुलाती है मुझे। की आंखे नम रखना अब तो आदत सी हो गई है। मुस्कुराता तो फिर भी हूं। छलकते जाम की तरह मालूम पड़ता है, आंखो में आंसू मेरे। फिर भी तुम्हारी यादों के साथ उलझता तो हूं। की आज फिर से भिड़ उमड़ी है तुम्हारी यादों का। आज फिर से आंखों ने सैलाब लाया है। की सच में बड़ी ज़ालिम होती जा रही है तुम्हारी यादें। की आज फिर से आंखों ने समंदर बहाया है। की झिझकता है दिल अब तुम्हारे नाम से भी। अब दफन होने का वक्त आया है। की कफन में लिपटा हुआ हूं , अब याद मत आना तुम। क्यूंकि अभी अभी तुम्हारे गलियों से मैंने अपना जनाजा घुमा के लाया है। की अब याद मत आना तुम , तुम्हारी यादों ने मुझे बहुत रुलाया है। की चलो अब अलविदा कहता हूं। अब खुद को दफन ओर तुम्हारी यादों को गुमनाम करता हूं।

हां नफरत है मुझे

की याद तो आज भी हो तुम मुझे,  पर अब वो तुम्हारी यादों से नफ़रत है मुझे। अब ख्वाब नहीं बुनता तुम्हारी नामों के साथ, अब तुम्हारी नामों से नफरत है मुझे। की दूर क्यूं नहीं चली जाती इस यादों के आशयाने से , तुम्हारी इस यादों के आशयाने से नफ़रत है मुझे। की मिटा दो वजूद तुम अपना या मेरा , कफन साथ लाया हूं,  इस जहां के मोहब्बत से नफ़रत है मुझे।

आंसू ही तो है बह जाने दो

आंसू ही तो है बह जाने दो। दर्द सारे दिल के निकल जाने दो। आंसू ही तो है बह जाने दो। कभी छिप छिपा के तो कभी बेखबर निकल जाने दो। कभी बारिश के बूंदे के साथ तो कभी वक़्त के पसीने के साथ ढल जाने दो। आंसू ही तो है बह जाने दो।

आंसू ही तो है।

की आंसू का अब क्या ही कहना, ये तो बे वक़्त बहता है अब। छलकती जाम में टपककर महफ़िल शोर करता है अब। कभी समंदर की सुनामी तो , कभी नदी के लहर बन बहता है अब। की आंसू ही तो है , उनकी यादों में बे वक़्त बहता है अब।

की क्या नाम दूं उनकी यादों का !

की बिखेर रखे हैं पन्ने फर्श पे, स्याही से अब हांथ काला है। की गुनहगार हूं मैं उनके मोहब्बत का जिसे आज भी लिखता हूं । उनकी यादों को लिख कर बिखेरता हूं, तो कभी यादों में टूट कर वहीं फर्श पे बिखरा पता हूं। की कभी आंखे नम तो कभी खामोश हर जगह खुद को पता हूं। की क्या नाम दूं उनकी यादों को हर जगह खुद को हारा पता हूं।