की बिखेर रखे हैं पन्ने फर्श पे, स्याही से अब हांथ काला है।
की गुनहगार हूं मैं उनके मोहब्बत का जिसे आज भी लिखता हूं ।
उनकी यादों को लिख कर बिखेरता हूं, तो कभी यादों में टूट कर वहीं फर्श पे बिखरा पता हूं।
की कभी आंखे नम तो कभी खामोश हर जगह खुद को पता हूं।
की क्या नाम दूं उनकी यादों को हर जगह खुद को हारा पता हूं।
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