की कहानी उस दौर की है, जहाँ आप सबकुछ खो देते हैं.. ।
पर कह किसी से नहीं पाते हैं...!
तो इस कविता में, मैं वो कुछ बयां किया है.... ।
की कहते हैं, वो क्या हुआ....,
तुझमेँ इतनी खामोशी कैसी है... ।
मैं हूँ तुमहारे साथ, ये तुम्हारी अधूरी कहानी कैसी है?
तो मैं नई डायरी लाया था, जो की टेबल पे पड़ा था,
लिखना था कुछ शायद पर वो खाली पड़ा था.... ।
तो मैंने जो कहा,
की सफेद पन्ने भी कुछ बयां करते हैं....!
वो हवाओं के झोकें से खुद को पलटकर स्याही को याद करते हैं.... ।
और माना की खामोश हूँ मैं, आपकी यादों का कई जवाब हूँ मैं... ।
पर एक वक़्त ऐसा भी आता है, की
दुःखी बाली स्टोरी पोस्ट करने लग जाते हैं, फिर लोग पूछते हैं क्या हुआ कैसे हुआ,
कुछ दिलाशा दे जाते हैं, कोई नहीं सब ठीक हो जायेगा.... ।
और एक वक़्त ऐसा भी आता है, की मन नहीं होता, स्टोरी डालने की खुद में लगने लगता है, अब तो वो चली गयी...
वापस तो आना नहीं फिर बदनाम क्यूँ करे खुद को उन्हें... ।
यार सच बताऊँ तो प्यार हर बार हो जाता है, पर ये इश्क़ है ना हर बार नहीं होती.... ।
तो गुनेहगार तो मैं भी हूँ उनका.... ।
काफिला उनकी आँखों का, जिसमें प्यार से बसाया था उन्हें.....!
रिहाई बस ये हुई, की उनके घर वालों के सामने मेरी इश्क़ थोड़ी सी कम हो गयी... ।
तो कोई नहीं,
अब सब खत्म करते हैं,, दोनों अपनी अपनी जिंदगी को जीते हैं...।
मतलबी थोड़े बनते हैं, इस जमाने के दौर से थोड़े अलग खुद को रखते हैं... ।
खुश रहना तुम तुम्हारी मुस्कुराहटें जान है मेरी.... ।
ये अधूरी इश्क़ की आखरी अल्फाज है मेरी... ।
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