की तुम मेरी पहली डायरी का वो अल्फ़ाज़ हो, जो हर पन्ने पे नाम छुपा रखा है तेरा।
की तुम बस तुम , तुमसे बातें सुरु जो हुई आजतक खत्म ही नहीं हुई ।
कभी यादों में तो कभी ख्वाबों में , की कभी लिखता डायरी के पन्नों के अल्फाजों में।
की कभी पूछता है ,आंखे मेरी अब वो हसीन का दीदार क्यूं नहीं ।
की रोता है ये दिल बेवजह , बस होटों की मुस्कुराहट आंखों को बरसने की इजाजत देता ही नहीं।
की बस तुम हां बस तुम आज याद जो आए हो बस तुम ।
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