की तुम्हरा यूं छोड़ जाना मुझे बहुत कुछ सीखा गया।
अकेला रहना, बेवजह बातों पे मुस्कुराना, गुमनाम सा कहीं खामोश खो जाना, और नींद ना आए तो तुम्हे याद कर रोना ।
तो ठीक है ना अब ज़िंदा तो हूं पर अब सांसे तुम्हारे नाम का नहीं लेता हूं, बस हर सांस में तुम्हारी यादें होती है।
बस झकझोर देता है वो अंधेरी कली रात तुम्हारी यादों में में तो कितने रातें सोते नहीं है हम।
और क्या कहूं लोग कहते हैं बदल से गए हो, तो शायद ठीक ही कहते होंगे, क्यूंकि अब बबजह किसी से बातें नहीं करता।
सच कहूं तो हर दिन सोचता हूं तुम्हे भूलने को, और ज़िन्दगी की नई शुरुआत करने को पर शायद ज़िन्दगी से भरोसा ही टूट सा गया हो ऐसा लगता है।
तो बात ऐसी है, वो चारदीवारी अक्सर मुझे घूरती दिखाई पड़ती है।
और छत मुझे देख मुस्कुराता मालूम पड़ता है।
नजरअंदाज करता हूं हर बार तुम्हारी यादों को पर हर बार तुम्हारी यादें, तुम्हारी बातें, मुझे रुला जाती है।
और आयने को छोड़ ही दो, हर बार चेहरे देखने के बाद वो कहती है कितने दिन हुए तुमने मुस्कुराया नहीं।
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