क्या कहें की अब नफरत सी हो गई है इस ज़िन्दगी से।
की अब खुद से घुटन सी हो गई है इस ज़िन्दगी में।
इस चार दिवारी के अंदर बंद अंधकार में रहने लगा हूं।
ज़िक्र जो करता हूं कभी अपने दर्द को आयेने से, की वो भी अब मुस्कुरा उठती है।
भले ही दोस्त का नामोनिशान नहीं है मेरे ज़िन्दगी में पर बाहर जा मुस्कुरा तो आता था।
तुम्हारे गम के छाए से दूर किसी अनजान से बात तो कर आता था।
पर अब तो और भी सताती है तेरी यादें, गमों के समंदर की तरह कमरे में लहराती नजर आती है तेरी यादें।
कभी जो खुश था तो बदनाम था तेरे नाम से ,
आज गमों में डूब चुका हूं तेरी यादों के साथ फिर भी तेरे नाम के साथ ही जुड़ा हूं मैं।
ये खामोश भरी कमरे कुछ यूं गुनगुनाती नजर आती है,
चारदीवारी अक्सर शोर करती सुनाई पड़ती है,
इन सब चीजों को छोड़ कान बंद करूं तो तेरी पयोलों की आवाज सुनाई पड़ती है।
कमबख्त इस खामोशी में भी पता नहीं कितनी शोर सुनाई पड़ती है।
सुनो कभी फुरसत मिले तो याद कर लिया करना किसी बहाने से ,
अब दफ्न होने जा रहा हूं इसी शोर भरी खामोशी में,
की क्या कहें अब नफरत सी हो गई है तेरी यादों और इस ज़िन्दगी से।
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