थोड़े से श्रृंगार क्या कर लेती है, हर जहां से शिकायत मेरे पास आती है।
वो गुलाब की पंखुड़ियां कहती है मुझसे उनके होटों की लाली मुझसे मिलती है बदल लेने को कहो उनसे।
और चांद तो दिन के उजाले में भी आ के कहती है, जड़ा कभी मुझसे मिलाओ उनको।
रूप है रंग है, जैसे लगती वो जमीन की पड़ी है, ऐसा पारियां कहती है, मुझसे।
फिदा तो उन पर हर कोई होता होगा हर सितारा कहता है मुझसे।
और उन सब से मैं भी कहता हूं हाय रे नादान, कभी देखे हो उनके आंखो के मासूमियत को कितनी मासूम है फिर भी नहीं जलती किसी से।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें