तुम जो आजकल खोमश रहने लगी हो किसी सुखी नदी के तरह,क्यूं और किसलिए खोए हो इस जहां से।
जड़ा बताओ तो, जो मझधार नदियों की तरह बहना जानती थी, खुली वादियों में उड़ना जानती थी,वो आज सिमट क्यूं रखा है खुद को।
सुनो तुम्हारी बातें अब याद आती है, तुम्हारा हर बात पे मुझे झगड़ना याद आता है, चलो लौट आओ ना इस ज़िन्दगी के सफ़र में।
सुनो तुम्हारी आजकल बहुत याद आती है।
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