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जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अब वो बिंदी लगाती है।

 वो अब बिंदी लगाती है, आंखो में  काजल लगाती है। थोड़े से श्रृंगार क्या कर लेती है, हर जहां से शिकायत मेरे पास आती है। वो गुलाब की पंखुड़ियां कहती है मुझसे उनके होटों की लाली मुझसे मिलती है बदल लेने को कहो उनसे। और चांद तो दिन के उजाले में भी आ के कहती है, जड़ा कभी मुझसे मिलाओ उनको। रूप है रंग है, जैसे लगती वो जमीन की पड़ी है, ऐसा पारियां कहती है, मुझसे। फिदा तो उन पर हर कोई होता होगा हर सितारा कहता है मुझसे। और उन सब से मैं भी कहता हूं हाय रे नादान, कभी देखे हो उनके आंखो के मासूमियत को कितनी मासूम है फिर भी नहीं जलती किसी से।

ज़िन्दगी में दर्द

क्या कहूं अब डायरी के पन्ने पे मैं खुद ही अपनी अल्फ़ाज़ नहीं लिख पाता हूं। किसको सुनाऊं दर्द अपना किसी से अब बया भी तो नहीं कर पाता हूं। वो टुकड़ों टुकड़ों में जीने का मतलब आज समझ आया। जब सड़कों पे निकला दो वक़्त की रोटियां ढूंढने तो पता चला उस रोटियों को पाने के लिए, यहां तो चमरी छिल जाती है।

तुम्हारी बहुत याद आती है

तुम जो आजकल खोमश रहने लगी हो किसी सुखी नदी के तरह,क्यूं और किसलिए खोए हो इस जहां से। जड़ा बताओ तो, जो मझधार नदियों की तरह बहना जानती थी, खुली वादियों में उड़ना जानती थी,वो आज सिमट क्यूं रखा है खुद को। सुनो तुम्हारी बातें अब याद आती है, तुम्हारा हर बात पे मुझे झगड़ना याद आता है, चलो लौट आओ ना इस ज़िन्दगी के सफ़र में। सुनो तुम्हारी आजकल बहुत याद आती है।