वो मां है, पता नहीं कैसे पर बिन बताए वो सब कुछ जान लेती है।
वो मेरे नन्ही क़दमों से पहली बार चलना और लड़खड़ा कर गिर जाना ।
ये देख मा फुली ना समाई वो अपनी उंगली थाम मुझे पूरी आंगन में घुमाई।
एक रास्ता दिखा कर मुझे उस मंजिल तक पहुंचा दी जहां सबकुछ है पर ए मां यहां तेरा प्यार नहीं है।
मां तुम्हे पता है मैं भगा भगा फिरता था और तुम मेरे पीछे पीछे खाना लेकर आती थी ।
पर आज खाना तो है पर मां आज तू खिलाने के लिए मेरे पास नहीं है।
मां यहां सबकुछ होते हुए भी पता नहीं सब खाली खाली सा लगता है।
घर है लोग हैं बातें तो सब से होती है पर मां तेरे एक नहीं होने से इस घर में रौनक नहीं है।
पता है दीवाली आ गई है, एक हफ्ते पहले से कभी तुम्हे परेशान किया करता था मुझे पटाखे दिला दो घर में लाइटें लगवा दो।
पर आज सबकुछ है पटाखे है लाइटें है पर तेरे बिन दीवाली दीवाली नहीं लगती है मां।
पता नहीं क्यूं तुम्हरे हर एहसास में तुम्हरे हर बात में कुछ डूंडता नजर आता हूं ।
तुम होती तो चेहरा देख मेरी परेशानी समझ जाती ,
पर आज अपनी परेशानी सबको बताने के बाद भी नहीं समझते ऐसे लोग हैं यहां पे मां।
तुम होती थी साथ मेरे तो झोपडी के घर भी स्वर्ग लगता था मां ।
और आज बड़े बड़े बंगले में भी रहकर वो महसूस नहीं होता है।
मां तुम हो तो हर जहां जन्नत है, हर दिन दीवाली हर दिन रंगत है।
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