अभी तो बस ख्यालें तंग सी है, और ज़िन्दगी जीने की गुजारिश में लगी हुई है।
एक दिन छोड़ जाएगी वो मुझे एहसास होने लगा है ।
किस हक से रोकुंगा उसे अब ये सताने लगा है।
एक दिन छोड़ जाएगी वो मुझे एहसास होने लगा है ।
किस हक से रोकुंगा उसे अब ये सताने लगा है।
नहीं बस अब वो दूरियां बनाने लगी है , अब वो कहने लगी है की हम सही नहीं हैं।
अब वो किसी और से नजदीकियां बनाने लगी है, अब हर बात में जिक्र होता है उसका ।
सोचता हूं कैसा खेल है ये दिल का एक के साथ खेल किसी और के साथ वो खेलने लगी है।
अब वो किसी और से नजदीकियां बनाने लगी है, अब हर बात में जिक्र होता है उसका ।
सोचता हूं कैसा खेल है ये दिल का एक के साथ खेल किसी और के साथ वो खेलने लगी है।
डर बस इतना सा लगता है, की उससे बात करना आदत नहीं तलब बान गई है।
चलो आदत को तो कुछ वक़्त के बाद छोड़ देते हैं ।
पर तलब का क्या उसे तो हर हाल में पूरी करनी होती है।
चलो आदत को तो कुछ वक़्त के बाद छोड़ देते हैं ।
पर तलब का क्या उसे तो हर हाल में पूरी करनी होती है।
चलो इतना हो जाने के बाद एक ही तो खुशी थी मेरी अब वो भी दफन हो जाएगी।
पता नहीं कैसे मुस्कुरा पाऊंगा किसी गैरों के पास ,मेरी मुस्कुराहट तो वो साथ लिए चली जाएगी।
पता नहीं कैसे मुस्कुरा पाऊंगा किसी गैरों के पास ,मेरी मुस्कुराहट तो वो साथ लिए चली जाएगी।
सोचता हूं ज़िंदा दफन हो लूं किसी कब्रिस्तान में,
फिर ख्याल आता है चलो जब तक है जी भर तो देख लूं उसे।
क्या मोहब्बत पाया है मैंने जो देखते देखते किसी और कि बाहों में होगी।
गुस्सा आएगा जरूर पर उस वक़्त दिल को कैसे समझा पाऊंगा।
कहीं आघोस में आकर मैं कत्लेआम तो ना कर जाऊंगा।
फिर ख्याल आता है चलो जब तक है जी भर तो देख लूं उसे।
क्या मोहब्बत पाया है मैंने जो देखते देखते किसी और कि बाहों में होगी।
गुस्सा आएगा जरूर पर उस वक़्त दिल को कैसे समझा पाऊंगा।
कहीं आघोस में आकर मैं कत्लेआम तो ना कर जाऊंगा।
उससे और उसके मुलाकात से ज्यादा डर मुझे अपने आप से लगने लगा है।
कभी वो अगर मिलेगी तो खुद को कैसे रोक पाऊंगा।
कभी वो अगर मिलेगी तो खुद को कैसे रोक पाऊंगा।
हां अब सोचने लगा हूं, आखरी वक़्त उसे अलविदा कैसे कह पाऊंगा।
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