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एक तिरंगा

ये मुल्क मेरा ये देश मेरा फिर भी पता नहीं हर घर पे झंडे अलग क्यूं है। क्यूं कहते हो हम हिन्दू है मुसलमान है। गैर मुल्क में जाकर तो यही बताते होगे ना की हम भारतीय हैं। फिर झंडे अलग क्यूं भाई, एक ही तो तिरंगा है, आओ ना मिल के साथ सान बढ़ाए। हर घर पे क्यूं ना हम तिरंगा लहराएं।

मां

वो मां है, पता नहीं कैसे पर बिन बताए वो सब कुछ जान लेती है। वो मेरे नन्ही क़दमों से पहली बार चलना और लड़खड़ा कर गिर जाना । ये देख मा फुली ना समाई वो अपनी उंगली थाम मुझे पूरी आंगन में घुमाई। एक रास्ता दिखा कर मुझे उस मंजिल तक पहुंचा दी जहां सबकुछ है पर ए मां यहां तेरा प्यार नहीं है। मां तुम्हे पता है मैं भगा भगा फिरता था और तुम मेरे पीछे पीछे खाना लेकर आती थी । पर आज खाना तो है पर मां आज तू खिलाने के लिए मेरे पास नहीं है। मां यहां सबकुछ होते हुए भी पता नहीं सब खाली खाली सा लगता है। घर है लोग हैं बातें तो सब से होती है पर मां तेरे एक नहीं होने से इस घर में रौनक नहीं है। पता है दीवाली आ गई है, एक हफ्ते पहले से कभी तुम्हे परेशान किया करता था मुझे पटाखे दिला दो घर में लाइटें लगवा दो। पर आज सबकुछ है पटाखे है लाइटें है पर तेरे बिन दीवाली दीवाली नहीं लगती है मां। पता नहीं क्यूं तुम्हरे हर एहसास में तुम्हरे हर बात में कुछ डूंडता नजर आता हूं । तुम होती तो चेहरा देख मेरी परेशानी समझ जाती , पर आज अपनी परेशानी सबको बताने के बाद भी नहीं समझते ऐसे लोग हैं यहां पे मां। तुम होती थी साथ मेरे...

ये साजिश है मोहब्बत का।

अभी तो बस ख्यालें तंग सी है, और ज़िन्दगी जीने की गुजारिश में लगी हुई है। एक दिन छोड़ जाएगी वो मुझे एहसास होने लगा है । किस हक से रोकुंगा उसे अब ये सताने लगा है। नहीं बस अब वो दूरियां बनाने लगी है , अब वो कहने लगी है की हम सही नहीं हैं। अब वो किसी और से नजदीकियां बनाने लगी है, अब हर बात में जिक्र होता है उसका । सोचता हूं कैसा खेल है ये दिल का एक के साथ खेल किसी और के साथ वो खेलने लगी है। डर बस इतना सा लगता है, की उससे बात करना आदत नहीं तलब बान गई है। चलो आदत को तो कुछ वक़्त के बाद छोड़ देते हैं । पर तलब का क्या उसे तो हर हाल में पूरी करनी होती है। चलो इतना हो जाने के बाद एक ही तो खुशी थी मेरी अब वो भी दफन हो जाएगी।  पता नहीं कैसे मुस्कुरा पाऊंगा किसी गैरों के पास ,मेरी मुस्कुराहट तो वो साथ लिए चली जाएगी। सोचता हूं ज़िंदा दफन हो लूं किसी कब्रिस्तान में, फिर ख्याल आता है चलो जब तक है जी भर तो देख लूं उसे। क्या मोहब्बत पाया है मैंने जो देखते देखते किसी और कि बाहों में होगी। गुस्सा आएगा जरूर पर उस वक़्त दिल को कैसे समझा पाऊंगा। कहीं आघोस में आकर मैं कत्लेआम तो ना कर...