मजबूर!
जड़ा मजबूर हूं, मैं।
लिखते अल्फ़ाज़ कलम से पन्नों पे।
क्या लिखूं मैं आज के भ्रष्टाचार,या उन छोटी बच्चियों के हालात पे।
क्या लिखूं मैं आज के भ्रष्टाचार,या उन छोटी बच्चियों के हालात पे।
जो आवाज उठते हैं उन्हें दबा दिए जाते हैं जो अल्फ़ाज़ लिखी जाती है कागज के टुकड़ों पे उन्हें जला दिए जाते हैं।
मसस कर रह जाता है दिल फैशन के मामले में हम बहुत आगे चले गए हैं।
पर सोच वहीं का वहीं पीछे छोर आए हैं।
क्या लिखूं मैं जड़ा मजबूर हूं मैं।
पर सोच वहीं का वहीं पीछे छोर आए हैं।
क्या लिखूं मैं जड़ा मजबूर हूं मैं।
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