वक़्त बीतता चला गया वक़्त के साथ साथ हम वी अंद्यारों में खुद के रोशनी के तलाश मै निकाल पड़े ।
आज मैं किसी वीर सपूतों या किसी भ्रष्ट नेताओं के उपर कुछ कहने बला नहीं हूं ।
बस इतना सा कहना है हमे जो एक बात है जहन में जो हर बार मुझसे सवाल कर खुद को झंझोर देती है।
ये वतन फरोसी हम नहीं तो को है, हमारा सान वतन है, हमारा मान वतन है।
हम वतन से हैं, हमसे वतन नहीं।
एक तिरंगा एक ही देश एक ही मजहब पर धर्म जाति अनेक ।
पूछ सके तो कभी फुरसत में पूछ लेना खुद से जवाब आएगा जहन से हम वतन के रखवाले हैं एक।
क्या जरूरत थी बर्फ की वादियों में शहीद होने कि क्या जरूरत थी होली बाले दिन खुनो की होली खेलने की।
आखिर जरूरत क्या थी।
कुछ को तिरंगे नसीब हुए तो कुछ को कफ़न वी नहीं।
पर गुमनाम शहीद तो हुए वतन के खातिर ।
जिन्हे पूछने वाला था उन्हें शहादत से तिरंगे नसीब हुए।
और जिन्हे ना मिल सकी लाशों की खबर उन्हें तो मां ने खुद के आंचल से ढक लिया।।
बहुत शर्म की बात है, आज हम अंदर ही अंदर देश को खोखोला कर खाए जा रहे हैं।
और कह दिए फिरते हैं हमारा यही तो नसीब है हमारा यही तो नसीब है।
हां हम बात बात पे चर्चा करते हैं देश के सिपाहियों का ।
जो चंद पैसों के लिए नहीं बस एक तिरंगे के लिए जान निछौबर कर देता है।
कहने का तो बहुत कुछ है मगर वक़्त बहुत कम
जरा हम कलम के विरो से कुछ कहना चाहेंगे ।
ए कलम के सिपाहियों भर लो वरुद की इंक और पन्ने पे इतिहास लिख डालो ।
हर जुबा पे होनी चाहिए वीरो की गाथा आइसा एक इतिहास रच डालो।
आइसा एक इतिहास रच डालो।
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