क्यों गूंजती है कानों में आहट बन किसी कि खामोशी क्यों शोर करती रहती है ये बेबसी ।
खुद से इतना बेबसी क्यों है।
अब तो हर इंतजार में बस इंतजार होता है उस काली रात घना बदल कि कब बरसे और मै वी उसके साथ साथ बरस जाऊं।
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क्यों गूंजती है कानों में आहट बन किसी कि खामोशी क्यों शोर करती रहती है ये बेबसी ।
खुद से इतना बेबसी क्यों है।
अब तो हर इंतजार में बस इंतजार होता है उस काली रात घना बदल कि कब बरसे और मै वी उसके साथ साथ बरस जाऊं।
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