सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अकेलेपन की बात नहीं है।

की पत्र किसके नाम लिखूं। पत्र पाने बालों में अपना अब कोई खास नहीं है। कोई अजीज थे , मेरे भी कभी। पर अब वो खास नहीं है। की एक बात हकीकत कहूं , कहने वाले बहुत मिल जाएंगे अपने। पर अपने छाए को ही देखो ना, उजाले में साथ और अंधेरे में साथ नहीं है।

बात बस इतनी सी है।

की बात अधूरी सी रह गई थी। थोड़ी सी बात पूरी पूरी करनी बाकी है। एक मुलाकात तो कर लो। गुनहगार कौन है अभी बताना बाकी है। हम तो रोज़ जीते हैं आंखों से समंदर बहाकर की ज़िन्दगी। एक रात मेरे पास तो  ठहर जाओ, अभी तो उम्र सारी बाकी है। की अब क्यूं पूछते हो घरी घरी की कैसे हो तुम। तुम्हारी यादों के सहारे जी रहे हैं हम। अभी यादों को दफन करना बाकी है। अब तुम ये मत कहना हम भी तकिए भिगोते हैं , तुम्हारी यादों में। अभी तो सैलाब आना बाकी है। की क्या लिखूं इस टूटे दिल का एहसास।  सारी उम्र तुम्हारी यादों में जलना अभी बाकी है। सोचता हूं मिटा दूं , तुम्हारी यादों के साथ खुद को मैं। बस कफ़न ओढ़ना बाकी है। आना हो तो जरा धीरे धीरे क़दमों से आना मेरे जनाजे पे। कमबख दिल है , कहीं तुम्हारी क़दमों की आहट फिर से जगा ना जाए। अभी तो दफन होना बाकी है।