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कश्मीर की वादियां

वो कश्मीर की वादियां।  तो मैं कश्मीर की वादियों में कुछ गुमनाम सा था, कुछ लिपटे थे गोद में मैं कश्मीर की वादियों में। वो हल्की हल्की ठंडी का मौसम था , और आस पास के जमीन बर्फ की चादर ओढ़ रखी थी। जहां पर्वत पठार और ये बर्फ की सुनहरी वादियां सूर्य उदय और अस्त होते वो केसरिया धूप बर्फ को और भी मनमोहक कर रही थी। तो वहीं नदी तालाब और झरने मिल के मधुर लय में पंछी के साथ कलरव कर रहे थे। मानो वो जगह किसी जन्नत से कम नहीं। कुछ दूरी पे सेव की बगीचे और फूलों की खेत मिल के मधुर स्वर में कुछ बाते कर रहे थे। वहीं भौरे फूलों से नुकछुपी कर रहे थे। वो कश्मीर की वादियां जगह जगह पर्यटकों को मनमोहक बना रहे थे , तो कभी खुद के गोद में बैठा कश्मीरी लोड़ी सुना रहे थे। ये अनुभव मानो जैसे जन्नत का सफर तय कर आया हो। सच में कश्मीर की वादियां किसी जन्नत से कम नहीं है।

आंखो में अश्क नहीं होती।

अब कहां आंखो से आंशु गिरते हैं। टपकते हैं ये बगैर मेरे आंखो के इजाजत के, दर्द ये दिल के पता नहीं कैसे समझ जाते हैं। जो कभी ख़ामोश हुआ करता था कभी वो मेरे खामोशी के पीछे का हाल पूछते थे। और आज बेहिंतहन रोता हूं फिर भी मेरी उनके जुबान पे ज़िक्र नहीं होती। करके देख लो कोशिश खुद से दूर रखने की, याद तो आऊंगा मैं एक ना एक दिन जड़ा अपने आंसु बचा के रखना। अब सोचता हूं खुद को दफन कर लूं, तुम्हारे यादों के साथ , पर ये कंबतख़ मौत की नींद सोने नहीं देती। शायद अब उम्र पूरी गुजार दूं , तेरी यादों के सहारे  अब आंखे बंद करता हूं तो चेहरा तेरी ही बनती है। क्या कहूं अब अपनी इस बेबसी का बस ये समझ लो कि  की आंखे तो रोती है पर अब उनमें अश्क नहीं होती ।