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नवंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पापा की पड़ी

वो अब परदा करती हैं, चांद से ,फूलें शर्मा जया करती हैं उनके छूने से। यकीन मानो मेरा उनकी मुस्कुराहटें है जो उनकी कातिलाना आदा है। उनके जो लिलार पे एक छोटी सी तिल है ना वो बिंदी की तरह सजा रखती है उन्हें। और क्या कहूं उनके नयनों के बारे में देखते ही प्यार सा उठता है दिल के अंदर । सच कहूं तो वो कोई नहीं शायद वो जन्नत की हूर है, तारीफों में क्या लिखूं उनके लिए। सच कहूं तो किसी की दोस्त तो किसी की हमसफ़र बाद में बनेगी वो। सच कहूं तो वो किसी नसिब्दार पापा की बेटी है वो।

ज़िन्दगी अब बात क्यूं नहीं करता।

किसी ने पूछा मुझसे अब बात नहीं करते हो,  क्या वक़्त की तकाजा है या बड़े इंसान बन बैठे हो। तो जरूरी नहीं है साहब ना बात करू तो बड़े इंसान ही बन जाऊं। ज़िन्दगी में बस दो वक़्त की रोटियां और खुद की उलझेने सुलझाने में लगा रहता हूं।  इसलिए वक़्त नहीं मिलता।