आंसुओं से कफन तक की कहानी। की रूंझता है आंखे मेरी अब ये बे वक़्त आता है। नदी नहीं, तालाब नहीं ये तुम्हारी यादों में समंदर बहता है। की किसी का फ़िक्र नहीं चलती सड़क हो या महफ़िल तुम्हारी नाम आते ही ये बेखौप बरस जाता है। पता नहीं पर क्यूं ढूंढता है आज भी ये दिल हर जगह तुम्हें, जबकि आंखे बस नम् होकर रह जाता है। की मैं टूटता हर वक़्त तुम्हारी यादों में उस कांच की तरह जो फर्श पे टूट कर बिखर सा जाता है। की अब ज़िन्दगी बदल सी गई है । की साज़िश होती है अब अंदर ही अंदर चादर को अब कफन में बदला जाए। तुम्हारी यादों में अब और टूटना नहीं है मुझे , मेरे बिस्तर को अब जनाजे में बदला जाए। दो चार लोग ही होंगे मुझे चाहनेवाले कब्रिस्तान तक ले जाने का हक बस उन्हें दिया जाए। कहीं खबर ना हो उन्हें, मैं ज़िन्दगी को अलविदा कहने वाला हूं। की उसके पहले उनके यादों के साथ मेरे सब को आग लगाया जाए। बहुत जी लिए ज़िन्दगी उनकी यादों के सहारे मेरे दोस्त, एक आखरी ख्वाइश पूरी की जाए।
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