सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सितंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

समझ आने लगा

घर समझ आने लगा । परिवार समझ आने लगा। जब छोड़ गए हम समंदर का किनारा दूर कहीं समंदर के लहरों में खो गए। तो किनारा समझ आने लगा। आंखे भर आई आज मेरी भी उनकी भी जब दरवाजे से अलविदा कहने का वक़्त आने लगा। चलो अब चैन नहीं इन आंखों को अब फिर से रुला कोई मुझे जाने लगा। देखो अब घर और परिवार समझ आने लगा। वो खुद पैरों में छाले लेकर मुझे कंधो पे घुमाने चला। खुद धूप में खड़ा मुझे छावों में रखता रहा ये देखकर मुझे एक परिवार और एक घर का समझ आने लगा। हां मुझे समझ आने लगा।

हां याद तो आती हो।

कंबतख़ वो ईश्क था जिसे याद कर हम आज भी जी रहे हैं। पता ही नहीं चला कि कब हम उनसे मोहब्बत कर बैठे और कब उनसे दूरियां बननी चालू हो गई। और एक दिन वो हमेशा के लिए अलविदा कह गई। अब तो बस मुलाकात होती है कभी तो बातें होती है। हाल में ही मिली थी वो शायद से किसी का इंतजार कर रही थी और उस इंतज़ार लम्हें में हमसे पूछ बैठी क्या मैं तुम्हे कभी याद आती हूं । मैंने मुस्कुराते हुए कहा हां शायद । मैंने तुम्हे बहुत भूलना चाहा पर जितना भूलने की कोशिश करता तुम उतना ही याद आती । मैंने तुम्हे भूलना ही छोड़ दिया देखो और तुमने मुझे याद बनकर सतना छोड़ दी। अक्सर मजाक में की हुए बाते कभी कभी सच होती है उस दिन मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ । मैंने कहा हां याद तो आती ही तुम वो साम की हवाओं में । हां याद तो आती हो तुम वो बेवजह ये पूछना कैसे हो तुम कुछ ही पल तो हुए थे मिल के फिर भी पूछती रहती थी कैसे हो तुम अब ये कोई नहीं पूछता । हां याद तो आती हो तुम खाना खाया या नहीं तुम नहीं खोएगे तो मैं भी नहीं खाऊंगी अब ऐसा कोई नहीं बोलता। हां याद तो बहुत आती हो तुम वो रात में घंटो बाते करना और बाते करते करते सो ...